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Adivasi Vs Vanvasi: वनवासी बनाम आदिवासी पर क्यों छिड़ा है सियासी घमासान? क्या कहता है संविधान

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Adivasi Vs Vanvasi


Gujarat Polls: गुजरात विधानसभा चुनाव में आदिवासी और वनवासी पर सियासी रार पैदा हो गई है. कांग्रेस समुदाय के लिए आदिवासी शब्द का इस्तेमाल करती है. जबकि बीजेपी और आरएसएस वनवासी शब्द का. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में गुजरात के महुवा में बीजेपी को इस शब्द को लेकर जमकर घेरा था. आइए आपको बताते हैं कि इस बारे में संविधान क्या कहता है.


आदिवासी बनाम वनवासी?

भारत का संविधान जनजातियों को परिभाषित करने के लिए अनुसूचित जनजाति या "अनुसूचित जनजाति" शब्द का इस्तेमाल करता है. कई आदिवासी लोग खुद को 'आदिवासी' ही कहलाना पसंद करते हैं, जिसका मतलब है 'आदि निवासी'. इसका इस्तेमाल सार्वजनिक बातचीत, दस्तावेजों, किताबों और मीडिया में किया जाता है.

वहीं 'वनवासी' का मतलब है जंगलों में रहने वाले. इस शब्द का इस्तेमाल संघ परिवार करता है जो ईसाई मिशनरियों के चंगुल से बचाने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर काम करता है. मुख्य जाति संरचना के बाहर पारंपरिक रूप से ये लोग एक यूनिट के तौर पर रहते हैं. हाशिये पर रहने वाले आदिवासी समुदाय के साथ 'वनवासी' शब्द का इस्तेमाल उनकी अलग पहचान बताने के लिए किया गया था.

आदिवासी समुदायों की बदलती संस्कृति और हिंदू धर्म से उनकी दूरी से चिंतित होकर रमाकांत केशव देशपांडे ने दूसरे सरसंघचालक एम एस गोलवलकर के साथ मिलकर 26 दिसंबर, 1952 को छत्तीसगढ़ के जशपुर में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम (एबीवीकेए) की स्थापना की थी. हालांकि शुरुआत में इसका मुख्य मकसद आदिवासियों का हिंदुकरण था. संघ का मानना है कि यह राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी था. समुदाय के बीच संघ की गतिविधि का फायदा बीजेपी को चुनाव के दौरान हमेशा मिला है. 

वनवासी शब्द को साल 1952 में लाया गया था. जो लोग जंगलों में रहते हैं, उन्हें पारंपरिक रूस से वनवासी कहा जाता है. साल 1930 में ब्रिटिश आदिवासी शब्द लेकर आए थे. अमेरिका में आदिवासियों को उनकी पहचान दिलाने के लिए आदिवासी शब्द का प्रयोग किया गया, क्योंकि वे हाशिए पर थे. लेकिन वनवासी शब्द बताता है कि वे जंगलों के निवासी हैं. 


क्या यह विवाद नया है?

आदिवासी बनाम वनवासी शब्द को लेकर चल रहे विवाद के बीच कई लोग कहते हैं, जरूरी नहीं कि आदिवासी समुदाय जंगलों में ही रहे. संविधान सभा की बहस के दौरान, हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा, जो बाद में संविधान सभा में आदिवासी प्रतिनिधि बने, ने 'आदिवासी' शब्द का उपयोग करने पर जोर दिया और सवाल किया कि हिंदी में अनुवाद करने पर 'आदिवासी' शब्द 'बनजाति' क्यों बन गया.


उन्होंने कहा था, कई समितियों की ओर से किए गए किसी भी अनुवाद में 'आदिवासी' शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है. यह क्या है है? मैं आपसे पूछता हूं कि 'आदिवासी' शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया और 'बनजाति' शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है? 

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