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किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर पहला हक तो पत्नी का ही होगा, फिर पत्नी व बच्चों का बराबर हक कैसे हुआ ? जाने

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एक वकील से पूछा गया सवाल पढ़कर हर किसी का दिमाग चक्कर खा सकता है। उत्तराधिकार से संबंधित हिंदुओ के मामले हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा निर्णीत किये जाते है।

अब सवाल है एक हिन्दू पुरुष की संपत्ति के बटवारे का तो आपको बता दूँ कि यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति की वसीयत करता है तो उसकी सारी चल तथा अचल संपत्ति उसके पास जाएगी जिसके नाम वसीयत की गई है। ऎसी वसीयत किसी एक के या एक से अधिक व्यक्तियों के नाम की जा सकती है।

वसीयत एक कागज के टुकड़े पर अपनी अंतिम इच्छा के रूप में लिखकर तथा ऐसे लिखे पर हस्ताक्षर या अँगूठा लगाकर, दो गवाहों के हस्ताक्षर करवाकर की जा सकती है। ऐसी वसीयत पूरी तरह से कानूनी होती है। वसीयत का राजिस्टर्ड या नोटेरी होना कानूनन आवश्यक नही होता।

अब यदि वसीयत नही है यानी कोई हिन्दू पुरुष निर्वसीयती मर जाता है तो उसके मरने के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा उसके प्रथम दर्ज़े के वारिसों में समान रूप से किया जाता है, और सभी प्रथम दर्ज़े के वारिसों को समान रूप से सामान हिस्सो में मृतक की चल अचल संपत्ति बांट दी जाती है।

उदहारण के लिए मान लीजिए कि एक हिन्दू पुरुष बिना वसीयत के मर गया। अब उसके प्रथम दर्ज़े के जो वारिस है वो है— उसकी माँ, उसकी पत्नी, उसका बच्चा, तो ऐसे में यदि उसकी एक ही पत्नी है और एक ही बच्चा है, तो ऐसे में निर्वसीयती मृतक की संपत्ति के तीन हिस्से होंगे, जिनमे से एक माँ को, एक पत्नी को, तथा एक हिस्सा बच्चे को मिलेगा।
 

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