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Mustard Oil Price: सरसों तेल के दामों में आई गिरावट, चेक करें 1 लीटर का भाव

वैश्विक बाजारों में गिरावट के बीच तेल की कीमतों में सुधार हो रहा है। दिल्ली के तेल-तिलहन बाजार में तमाम तेल की कीमतों में तेजी देखने को मिल रही है।
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Mustard Oil Price: सरसों तेल के दामों में आई गिरावट, चेक करें 1 लीटर का भाव

वैश्विक बाजारों में गिरावट के बीच तेल की कीमतों में सुधार हो रहा है। दिल्ली के तेल-तिलहन बाजार में तमाम तेल की कीमतों में तेजी देखने को मिल रही है। इस बीच सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, कच्चा पाम तेल और पामोलिन तेल के भाव गिरावट के साथ बंद हुए। मलेशिया एक्सचेंज 0.3 प्रतिशत नीचे था जबकि शिकागो एक्सचेंज कल रात 2.5 प्रतिशत मजबूत होकर बंद हुआ था और वर्तमान में नीचे है।

सरसों तेल के भाव कितने रहे
पिछले दो साल में किसानों को तिलहनी फसलों के अच्छे दाम मिले हैं और वे अपनी उपज को सस्ते में बेचने से कतरा रहे हैं। हालांकि सरसों का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बना हुआ है। देशी तेल की पेराई में तेल मिलों को घाटा होता है क्योंकि पेराई के बाद देसी तेल की कीमत अधिक होती है। इसलिए लगभग 50 प्रतिशत पेराई हो रही है, जिससे खुले बाजार में सरसों तेल की कीमत 2,200-2,250 के आसपास है। पिछले साल इस समय। यह 2,450-2,500 रुपये प्रति क्विंटल था, इस बार बढ़कर 2,450-2,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।

कैसी रही तेल की कीमत?

8-9 महीने पहले बिनौला तेल का थोक भाव 160 रुपये किलो था, जो अब घटकर 95 रुपये प्रति किलो हो गया है। बिनौला तेल सस्ता होने से बिनौला खली की कीमतों में तेजी आ रही है और इसके चलते वायदा कारोबार में लगातार चौथे दिन अप्रैल अनुबंध बिनौला खली की कीमतों में एनसीडीईएक्स में 2.1 फीसदी की तेजी देखी गई।

नेफेड ने यह बात कही

सहकारी संस्था नेफेड से सरसों खरीदने से ज्यादा जोर देशी तेल और तिलहन के लिए बाजार तैयार करने पर है। आयात शुल्क मुक्त खाद्य तेलों के दाम इतने सस्ते हैं कि बाजार में बिनौला की खपत नहीं हो रही है जिससे बिनौला पेराई मिलें और ओटाई मिलें कम काम कर रही हैं।

किसानों ने उत्पादन बढ़ाया

सरकार के आह्वान पर देश के किसानों ने तिलहन का उत्पादन बढ़ाया है। लेकिन अब उनके लिए सबसे जरूरी है कि देसी तेल और तिलहन का बाजार तैयार किया जाए। इसके लिए सस्ते आयातित तेलों खासकर सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे नरम तेलों की कीमतों पर नियंत्रण के लिए उन पर आयात शुल्क को अधिकतम करना होगा और तभी बाजार की स्थिति ऐसी बनेगी कि घरेलू तेल-तिलहन के दाम नीचे आएंगे।

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