Locust Attack: हरियाणा और राजस्थान में फसलों पर मंडरा रहा टिड्डियों का खतरा, यहां पढ़ें इससे जुड़ी पूरी खबर
Locust Attack: किसानों के लिए एक बेहद बुरी खबर सामने आ रही है। जहां किसानों की मेहनत पर खतरा मंडरा रहा है। बता दें कि एक बार फिर से फसलों पर टिडि्डयों के हमले का खतरा बढ़ चु हैका। जिसका एक सर्वे सामने आया है। सर्वे में राजस्थान के कई जिलों में टिड्डियों के 155 स्पॉट मिले हैं।
मोहनगढ़ कस्बे में टिड्डियों का एक बड़ा दल
जैसलमेर से 150 किलाेमीटर दूर मोहनगढ़ कस्बे में टिड्डियों का एक बड़ा दल 150 हेक्टेयर खेतों में डेरा डाले बैठा है। हालांकि, ये अभी अंडों से निकले ही हैं, लेकिन, तेजी से इनकी तादाद बढ़ती जा रही है। फिलहाल टिड्डी नियंत्रण दल के अधिकारी इसे कंट्रोल करने का दावा कर रहे हैं।
राजस्थान के ये इलाके बन सकते हैं सेंटर
टिड्डी विभाग के डॉ. वीरेंद्र बताते हैं- पिछले कुछ सालों से रेगिस्तानी इलाकों में जून-जुलाई में बरसात के बाद से ही टिड्डी का खतरा बढ़ जाता है। थार में टिड्डी पाक की तरफ से आती रही हैं।
इस बार पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर समेत आसपास के इलाकों में जमकर बारिश हुई है। ऐसे में यहां हरियाली बढ़ी और जमीन में नमी भी। इसके चलते टिड्डी के पनपने के लिए पारिस्थितियां पूरी तरह अनुकूल बनी हुई हैं।
एक रात में ही चौपट कर देते हैं पूरी फसल
टिड्डियां पूरी दुनिया में खेती को तबाह कर रही हैं। भारत में टिड्डियों का प्रजनन केंद्र राजस्थान और गुजरात का पाकिस्तान से लगा सीमावर्ती क्षेत्र है। ये रहती तो अकेली हैं, लेकिन मुसीबत में ये एक होकर झुंड बना लेती हैं, जिसे टिड्डी दल कहते हैं।
पेड़ों की सारी हरियाली खत्म
टिड्डी दल पेड़ों की सारी हरियाली खत्म कर देते हैं। ऐसा कहा जाता है- अगर एक टिड्डी दल एक रात किसी बड़े खेत में बैठ जाए तो वे सारी फसल एक रात में ही चौपट कर देते हैं। एक लाख टिड्डियां अमूमन 500 लोगों के खाने के बराबर भोजन खा जाती है।
जिस खेत पर हुआ रसायन का छिड़काव, वहां फसल खराब
दरअसल, टिड्डी को मारने के लिए टिड्डी नियंत्रण दल की टीम इलाकों में स्प्रे कर रही है। ताकि इनका खात्मा हो सके। लेकिन, किसानों के लिए ये केमिकल छिड़काव भी किसी चिंता से कम नहीं है। क्योंकि खेत में जिस केमिकल के छिड़काव से वहां फसल भी खराब हो जाएगी।
5 हजार किलोमीटर दूर से आई ये आफत
ये एक प्रवासी कीट है और इसकी उड़ान दो हजार मील तक पाई गई है। भारत से करीब 5000 किलोमीटर दूर पूर्वी अफ्रीका इनका मुख्य स्पॉट है। इथोपिया, केन्या, सोमालिया, जिबूती और युगांडा जैसे देशों में बारिश के मौसम में प्रजनन के बाद इसकी संख्या इतनी बढ़ जाती है। इसके बाद ये दल ईरान, सऊदी अरब, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से होता हुआ भारत में एंट्री करता है।