25 रूपए रोजाना पर करते थे मजदूरी, मंदिर में गुजारी रातें, IAS विनोद कुमार की कहानी भर आएंगी आंखें
Success Story: इंसान के अंदर कुछ पाने का जुनून हो तो वह बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। आज हम कुछ ऐसे ही व्यक्ति की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने अपने बुलंद हौसले से कामयाबी प्राप्त की, और वे आज एक आईएएस अधिकारी है उन्होंने अपनी शुरुआती जिंदगी गरीबी में बिताई लेकिन उनके मन में आईएएस बनने का जुनून था। जानी उनके सफलता की कहानी...
Success Story: इंसान के अंदर कुछ पाने का जुनून हो तो वह बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। आज हम कुछ ऐसे ही व्यक्ति की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने अपने बुलंद हौसले से कामयाबी प्राप्त की, और वे आज एक आईएएस अधिकारी है उन्होंने अपनी शुरुआती जिंदगी गरीबी में बिताई लेकिन उनके मन में आईएएस बनने का जुनून था। जानी उनके सफलता की कहानी...
उत्तर प्रदेश के भदोही के गांव खांऊ में एक बेहद गरीब किसान परिवार में जन्में विनोद कुमार सुमन की जिंदगी गरीबी और संघर्षों से भरी रही है. घर में आमदनी का एकमात्र स्रोत खेती ही था. जमीन भी ज्यादा बड़ी नहीं थी और अनाज बेचकर भी अच्छे से घर का गुजारा नहीं होता था. पूरे परिवार की कम-से-कम दो जून की रोटी की खातिर सुमन के पिता खेती के साथ-साथ कालीन बुनने का भी काम करते थे.
विनोद सुमन की प्रारांभिक शिक्षा गांव से हुई. इसके बाद उन्होंने पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया. सुमन बतातें हैं कि 'पांच भाई और दो बहनों में मैं सबसे बड़ा हूं. जाहिर है परिवार की जिम्मेदारी में पिता का हाथ बंटाना मेरा फर्ज भी था. लेकिन सुमन किसी भी हाल में अपनी पढ़ाई भी नहीं छोड़ना चाहतें थे. किसी तरह उन्होंने इंटर पास किया पर आगे की पढ़ाई के लिए आर्थिक समस्या खड़ी हो गई. उनके परिवार पर खे मरने की नौबत तक आ गई.
अपने ही दम पर मंजिल पाने के जुनून में सुमन अपने माता-पिता को छोड़कर घर से शहर की ओर चल पड़े. उनके पास सिर्फ शरीर के कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था. आर्थिक हालातों से टूट चुके सुमन ने इतनी दूर निकलने का मन बना लिया जहां उन्हें कोई पहचान ही न सके. उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल जाने का निश्चय किया. वहां पहुंचते-पहुंचते उनके पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं बची. अंत में उन्होंने वहां एक मंदिर में पहुंचकर पुजारी से शरण मांगी. अगले वह दिन काम की तलाश में निकले.
उन दिनों श्रीनगर में एक सुलभ शौचालय का निर्माण चल रहा था. ठेकेदार से मिन्नत के बाद वह वहां मजूदरी करने लगे. मजदूरी के तौर पर उन्हें 25 रुपये रोज मिलते थे. संघर्ष के दिनों को याद करते हुए सुमन बताते हैं कि करीब एक माह तक उन्होंने एक चादर और बोरे के सहारे मंदिर के बरामदे में रातें बिताई. इस दौरान मजदूरी से मिले पैसों से कुछ भी खा लेते थे.
कुछ महीनों तक ऐसा चलने के बाद उन्होंने उसी शहर के विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने का निश्चय किया. उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल विवि में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया और गणित, सांख्यिकी और इतिहास विषय लिए.
सुमन की गणित अच्छी थी. इसलिए उन्होंने रात में ट्यूशन पढ़ाने का निश्चय किया. पूरे दिन मजदूरी करते और रात को ट्यूशन पढ़ाते. धीरे-धीरे उनकी आर्थिक हालात कुछ ठीक हुए तो उन्होंने घर पर पैसे भेजने शुरू कर दिए. वर्ष 1992 में फर्स्ट डिविजन से बीए करने के बाद सुमन ने पिता की सलाह पर इलाहाबाद लौटने का निश्चय किया और यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में एमए किया.
इसके बाद 1995 में वो लोक प्रशासन में डिप्लोमा किया और प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गये. इसी बीच उनकी महालेखाकार ऑफिस में लेखाकार की सर्विस लग गई. सर्विस होने के बाद भी उन्होंने तैयारी जारी रखी और 1997 में उनका पीसीएस में चयन हुआ और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
तमाम महत्वपूर्ण पदों पर सेवा देने के बाद 2008 में उन्हें आइएएस कैडर मिल गया. वह देहरादून में एडीएम और सिटी मजिस्ट्रेट के अलावा कई जिलों में एडीएम गन्ना आयुक्त, निदेशक समाज कल्याण सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं. वे अल्मोड़ा और नैनीताल में भी जिलाधिकारी के पद पर रहे हैं.
सुमन का मानना है कि अगर दृढ़ निश्चय हो तो कोई भी कठिनाई इंसान को नहीं डिगा सकती. अपने लक्ष्य को लेकर सुमन दृढ़-संकल्प होकर डटे रहे और अंत में सफलता का स्वाद चखें. इनकी सफलता से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि जिंदगी की राह में हमें अनगिनत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, हमें उनका डटकर मुकाबला करने की जरुरत है न कि हार मान लेने की। वो स्टूडेंट्स को अपने गोल पर फोकस होकर मेहनत करते जाने की सलाह देते हैं.